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"अकर्त्तव्येष्वसाध्वीव तृष्णा प्रेरयते जनम्| तमे

"अकर्त्तव्येष्वसाध्वीव तृष्णा प्रेरयते जनम्| 
तमेव सर्वपापेभ्यो लज्जा मातेव रक्षति||"
अर्थात् –
तृष्णा मनुष्य को बुरी स्त्री के समान न करने योग्य कार्यों में लगा देती है, परन्तु इसके विपरीत लज्जा मनुष्य को माता के समान सभी पापों से बचाए रखती है।

©YumRaaj ( MB जटाधारी )
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