ज़िंदगी अपनी को क्यूं खंगालू कितना उसके पुराने ज़ख़्म निहारूं जो बीत गया अब क्यों गड़े मुर्दे उखाडूं नहीं चाहता बीता कल याद करना क्यों इस में अपना समय गुजारूं चलो अब आने वाले कल की बुनियाद सवारूं ©Dr Supreet Singh #जिंदगी_के_पन्ने