Nojoto: Largest Storytelling Platform

मैं मांगा था प्रेम अपने परिवार के लोगों से, उन्ह

 मैं मांगा था प्रेम 
अपने परिवार के लोगों से,
उन्होंने दिया घृणा, द्वेष, 
अप्रेम असीमित मात्रा में। 

जीवन में न समझा 
न ही समझने की कोशिश की ,
रिश्ते - नाते निर्थक लगते हैं 
अब तो इस जीवन में। 

मैं उब गया इस मानव 
समाज के अमानवता से 
मैं "साकेत की उर्मिला" 
के समान ही उपेक्षित 
पात्र मात्र रह गया हूँ 
इस मानव समाज में। 

ये पतझड़ के समान मेरा 
सारा जीवन ,
ईश्वर भी सोचता होगा 
क्या? लिखूं अब इसके 
जीवन में।

©दुलामणी पटेल

©Dulamani Patel (सारथी)
  #akelapan #जीवन #निर्थक