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जिंदगी दौड़ है दौड़ते रहो दौड़ते रहो सब इसके संग भ

जिंदगी दौड़ है
दौड़ते रहो दौड़ते रहो
सब इसके संग भागते रहो
जीत जाओ तो 
सब साथ चलते
हार जाओ तो 
अपने ही साथ छोड़ते
परिश्रम करता चल
आगे बढ़ता चल
जिंदगी अजीब दौड़ है 
इंसान बस यहां खिलौना है 
आती है जब मौत 
तब साथ है छोड़ती ये दौड़। फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। अनुशासन और परिश्रम की मिसाल है उनका जीवन।

18 जून 2021 को उनके निधन का समाचार मिला है। हम उस महान खिलाड़ी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
#collab #मिल्खासिंह  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
जिंदगी दौड़ है
दौड़ते रहो दौड़ते रहो
सब इसके संग भागते रहो
जीत जाओ तो 
सब साथ चलते
हार जाओ तो 
अपने ही साथ छोड़ते
परिश्रम करता चल
आगे बढ़ता चल
जिंदगी अजीब दौड़ है 
इंसान बस यहां खिलौना है 
आती है जब मौत 
तब साथ है छोड़ती ये दौड़। फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। अनुशासन और परिश्रम की मिसाल है उनका जीवन।

18 जून 2021 को उनके निधन का समाचार मिला है। हम उस महान खिलाड़ी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
#collab #मिल्खासिंह  #YourQuoteAndMine
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