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थक गई हूं अच्छी होकर सबका भला सोचते सोचते जी करता

थक गई हूं अच्छी होकर सबका भला सोचते सोचते 
जी करता है क्यूं न चंद घड़ी भर मैं भी थोड़ा बिगड़ जाऊं
लोग कहते हैं तो कहने देते है उनको तो बस बोलना ही बाकी है
बिना बिगड़े जब मुझे कहते हैं कि मैं सुधर जाऊं
जब सुनना ही है सबके ज्ञान को हमें
तो क्यूं न चंद घड़ी भर मैं भी थोड़ा बिगड़ जाऊं
सुधरे हुए हाल से भी क्या पाया ही है जिंदगी से 
तो बेहतर यही लगता है कि क्यूं न चंद घड़ी भर 
मैं भी थोड़ा बिगड़ जाऊं

©नीति.......
  #थोड़ा #बिगड़ #जाऊं