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आज यूं ही इतिहास पढ़ने बैठ गई तो पता चला कि दस्ता


आज यूं ही इतिहास पढ़ने बैठ गई तो पता चला कि दस्तावेज तो बता रहे है कि देश तो १९४७ में ही आजाद हो गया था। संशय हुआ जानकर, हैरानी भी हुई, तो सोचा क्यों ना और गहराई में पढ़ा जाए। अंततः कुछ रहस्य पता चले, अब ये वाकई गुप्त थे या इनके उजागर होकर भी न पता होने का ढोंग करते है हम सब या क्या, ये तो नहीं समझ पाया मैंने, खैर वो रहस्य क्या है जानते है आप?
मैं बताती हूं मसला दस्तावेजों पर अंकित आजादी का है ही नहीं, वो तो इक फ़क़त प्रमाण है बाहरी देशों को बताने का कि भारत आजाद देश है।... है क्या?
पर वास्तव में, आंतरिक सुरक्षा, आजादी का क्या? 
क्या हर युग में महाभारत करके ही नारी के सम्मान और सुरक्षा का पाठ पढ़ाया जाएगा? क्या हर बार दुशासन और दुर्योधन की जांघों को उखाड़ फेंक कर ही नीचों को सबक सिखाना पड़ेगा? 
और कहां गए वो लोग जो नारी जाति के अकेले रातों में निकलने पर, स्त्रियों के कपड़ों से, उनके बोलने और तर्क करने से, पुराने परम्पराओं को छोड़ सम्मान से जीने पर, उनके चरित्र का प्रमाण-पत्र दे डालते है, अभद्र टिप्पणियां करते है, अब क्या कहेंगे जब एक नारी जात अपने ही कार्यस्थल पर सुरक्षित नहीं है। 
क्या अब समय नहीं आ गया है कि नारी का शोषण करने वाले, नारी को भोग वस्तु समझने वाले इन नीच पापियों को ऐसी सजा देने का कोई कानून बनें, जिससे भारतीय संविधान महिलाओं की सुरक्षा के लिए पूर्णतः कठोर संविधान बनें। 
घरों पर बुल्डोजर चलाने, सालों-साल मुकदमा चलाने से, अब ये समाज नारी के सम्मान और सुरक्षा को समझने लायक नहीं बचा, जरूरत है तो एक मात्र ऐसी सजा की जिसमें न मरने की इजाजत हो और न जीने का कोई शौक, न छुपने के लिए कोई ठिकाना हो और न सुनने वाला कोई। हरकतों से जो ये नीच पापी साबित करते है बस वही करने की जरूरत है, नामर्दों वाली हरकतें करने वालों को नामर्द बनाने की।

©Deepanjali Patel (DAMS)
  #justice #Stoprape