तृष्णा, माया, मोह में भटक रहा हर इंसान नजरों से गिरने लगे छोड़कर सभी शर्म हया भूले जा रहे अपने संस्कार, नीति के बंधन क्या बड़े क्या छोटे बस इसी बात का मलाल ©Mahadev Son #7words