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वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है हृदय अछूता है मेरा ख

वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है
हृदय अछूता है मेरा
ख्वाब मैं भी सजाती हूँ
भूख मुझे भी लगती है
आँख मेरी भी जगती है
मन मेरा भी मचलता है
लेकिन रस के नाम पर
जीवन में, बस अंक है ।
वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है ।।

ये दुनिया बाज़ार है
मैं उसका त्यौहार हूँ
बहुतों ने मनाया है मुझे
नोच नोच कर खाया है मुझे
एक दिन आयेगा, जब ये मेला खत्म होगा
सब मुझे छोड़कर चले जायेंगे
रह जाऊंगी मैं अकेली, स्तब्ध
मेरा प्रारब्ध, अविचलित और निशंक है ।
वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है ।।

- रविन्द्र गंगवार वैश्या विलाप......... Ravi Kumar Dashrath Prasad Kundan Kumar Yadav Romaisa Kalpana Kumari  Namita Writer Sushma Swaraj Shivangi Vyas Subhan Jyoti
वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है
हृदय अछूता है मेरा
ख्वाब मैं भी सजाती हूँ
भूख मुझे भी लगती है
आँख मेरी भी जगती है
मन मेरा भी मचलता है
लेकिन रस के नाम पर
जीवन में, बस अंक है ।
वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है ।।

ये दुनिया बाज़ार है
मैं उसका त्यौहार हूँ
बहुतों ने मनाया है मुझे
नोच नोच कर खाया है मुझे
एक दिन आयेगा, जब ये मेला खत्म होगा
सब मुझे छोड़कर चले जायेंगे
रह जाऊंगी मैं अकेली, स्तब्ध
मेरा प्रारब्ध, अविचलित और निशंक है ।
वैश्य हूँ मैं, बस यही कलंक है ।।

- रविन्द्र गंगवार वैश्या विलाप......... Ravi Kumar Dashrath Prasad Kundan Kumar Yadav Romaisa Kalpana Kumari  Namita Writer Sushma Swaraj Shivangi Vyas Subhan Jyoti

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