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आँखों मे इंतज़ार का दे कर हुनर चली गयी, चाहा

 
 आँखों  मे इंतज़ार का दे कर हुनर चली गयी,
 चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चली गयी,
 दिन की वो महफिलें गईं रातों के रतजगे गए, 
 कोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चली गयी |

©altaf rjn
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altaf rjn

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