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आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है, अपनी शर्तो

आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है,
अपनी शर्तो पे ज़िंदगी जीने का नशा ही कुछ और है,
वरना हकीकतें तो अक्सर रुला देती है,
ग़लतफहमी में जीने का मज़ा कुछ और ही है।

©harsh Raj
  #Love #shayarigazal#romance
harshraj2675

harsh Raj

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