काली अंधेरी रात का सफर, शहर से दूर वियाबान जंगल के बीच से जाती सड़क, तेज आंधी और तूफान, अचानक बिगड़ गई मेरी कार, अब, मैं , मेरी कार, तेज बारिश , घना जंगल और ऊदबिलावों की आवाज़.. कुछ कदम जब मैं चली, आगे एक पुरानी हवेली दिखी.. हवेली से किसी के कदमों की आवाज़ आना, कम्बल में खुद को लपेटे उस परछाईं का मेरी तरफ आना, फिर अपने काँपते बूढ़े हाथों से लालटेन जलाना.. उफ़ !! ये ख़ौफ़नाक कल्पनाएँ.. अब मेरे कमरे की खिड़की से सटी अधबनी इमारत में भूत दिखना ही बाकी है मुझे। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों की रचनाओं का अनुवाद बहुत चाव से पढ़ा गया। इस शीर्षक से उन की काव्य दृष्टि का पता चल जाता है। 'एक ग़ैर रूमानी समय में', ख़ुद अपनी आंख से', 'लालटेन जलाना' उन के प्रमुख काव्य संग्रह हैं। विष्णु खरे की कविता शैली बहुत अनोखी है। ज़्यादातर लंबी कविताएं हैं। महानगरीय जन जीवन का बड़ा त्रासद चित्र अपनी कविताओं में उन्होंने खींचा। आम जीवन के दृश्यों से कविता बनाते हुए वो पाठक को सिरे से झकजोर देते हैंl उन की कविता भाषा, विचार और शैली का अद्भुत संगम है। नए कवि लेखकों को उन का पाठ ज़रूर करना चाहिए।