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एक बात कहूँ... रहने दो फिर कभी! फिर कभी... बात रहे

एक बात कहूँ...
रहने दो फिर कभी!
फिर कभी...
बात रहेगी यही?
ये ग़ज़ल सी ग़मक
रातरानी की...कामिनी की
धूप गुनगुनाएगी कभी?
अमावस की खिड़की से
चाँद झाँकेगा कभी?
घुल जाएगा वक़्त 
इसके सन्दर्भ...
छूट जाएँगे इसके साथ
और जुड़ जाएगा बहुत कुछ नया।
कुछ और ही बात होगी,
ये बात फिर होगी नहीं...
मुस्कुराहट जो रूठकर 
आँखों से बह गई...
वो शिक़ायत भी
इतनी जज़्ब होगी कभी
मुस्कुराएगी फिर सही
वो मुस्कुराहट नहीं होगी
चहक पे बंदिशें रख दो
झरोखे वालों मगर सुन लो
तुम्हारे आँगन में गौरैया की
फिर से आमदो-आहट नहीं होगी

 #monerkotha
एक बात कहूँ...
रहने दो फिर कभी!
फिर कभी...
बात रहेगी यही?
ये ग़ज़ल सी ग़मक
रातरानी की...कामिनी की
धूप गुनगुनाएगी कभी?
अमावस की खिड़की से
चाँद झाँकेगा कभी?
घुल जाएगा वक़्त 
इसके सन्दर्भ...
छूट जाएँगे इसके साथ
और जुड़ जाएगा बहुत कुछ नया।
कुछ और ही बात होगी,
ये बात फिर होगी नहीं...
मुस्कुराहट जो रूठकर 
आँखों से बह गई...
वो शिक़ायत भी
इतनी जज़्ब होगी कभी
मुस्कुराएगी फिर सही
वो मुस्कुराहट नहीं होगी
चहक पे बंदिशें रख दो
झरोखे वालों मगर सुन लो
तुम्हारे आँगन में गौरैया की
फिर से आमदो-आहट नहीं होगी

 #monerkotha