रैना जाने क्यों कहती है ये दूनियाँ? बाबूल के आँगन की हम हैं सुनहरी चिड़ियाँ। पीहर है, बस रैन बसेरा, उड़ जायेंगी होते ही सवेरा। ये रीत-रिवाज़ झूठा समाज,बचपन से ही हमें पराया बताता है। दूसरे की अमानत होती हैं हम,हर पल बाबूल को यही सुनाता है। मईया भी हमारी कभी समाज के, इस ताने को झेली थीं। इसीलिए वो भी भुल जाती हैं,एक दिन हम उनके ही गोद में खेली थीँ। करती हैं जननी अकसर ये शिक़ायत की हम तात-सा उनसे न प्रेम जताती हैं। इसमें हमारा कोई दोष नहीं, हर पल बाबूल ही हम पर विश्वास दिखाते हैं। न जाने क्यों ये समाज बेटी के बाबुल पर ज़हर सा बाण चलाता है? विदा करो अब जल्द से जल्द अपनी लड़की को बस यही हर पल सुनाता है। पर फिर भी लाडली के बाबूल मतलबपरस्ती समाज को अनदेखा करके। कुल के दीपक पर नहीं, बल्कि अपनी नन्हीं कलियों पर स्नेह बरसाते हैं। इसीलिए तो हर पिता बेटी के "हृदयमंजूला" बनकर जीवन भर याद आते हैं। -Rekha💕Sharma(हृदयमंजूला) #रैना