राब्ता तू सुबह है तो मै शाम सा तू धूप है तो मै छाव सा तू जमी तो मै आसमान सा तू है दृढ ईमान तो मै झूठा इंसान सा दो रुख है अस्तित्व के अपना रिश्ता कल्पनओं के जहान सा दूरियां शगुन का रूप है बनी जो बना रही है है इस जिस्म को बेज़ान सा बस कुछ ऐसा ही है अपना राब्ता राबता है कुछ ऐसा