मुझे तो उसकी हर खता मंजूर थी!! फिर भी ना जाने क्यों वह पास रहकर भी मुझसे दूर थी!! शायद कोई मजबूरी थी जो उसे मेरे पास रहने पर मजबूर कर रही थी!! वह तन से मेरे पास रहकर मन से खुद को मुझसे दूर कर रही थी!! खैर वो जा चुकी है मजबूरियों की सारी जंजीरें तोड़कर!! चली गई वो इस जालिम दुनिया में मुझे तनहा रोता छोड़कर!! वो खुश है किसी और के साथ "संगीत" को भुलाकर!! उसकी परवाह सच्चे दिल से करने वाले उसके सच्चे मीत को भुलाकर!! मैं सोच कर रोता हूँ की आखिर उसे जाना ही था तो आई क्यों?? जिस मोहब्बत में उसे कोई सार ना दिखा आखिर उसने निभाई क्यों!! ठीक है "जानाँ" तू चाहती है इसलिए, तुझे भूल जाऊंगा मैं!! सिर्फ तेरी खातिर फांसी के इस फंदे पर भी झूल जाऊंगा मैं!! पर याद रखना तेरी दी हुई यही ठोकर, मुझे अपनी मंज़िल तक पहुंचएगी!! और तू कहीं दूर मुझे याद करके पछ्ताएगी!! वो दिन भी आएगा जब मुझे तेरी याद भी नहीं आएगी!! संगीत.....✍ पछ्ताएगी 😡