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"ख़त" बेनाम सा लगता है ना कुछ कुछ फटा सा बिखरा सा

"ख़त"
 बेनाम सा लगता है ना

कुछ कुछ फटा सा बिखरा सा
स्याहियों से भरा नीली लाल हरी गुलाबी
बहोत सारे रँग
पर
पर दिल के जज्बातों का कोई रँग नहीं होता
नहीं होता रँग शरारती आशाओं का
क्या पतझड़ का कोई रँग होता है
क्या दुःखते दिल की कोई धड़कन रँगीन होती है
नहीं ना

सबका जवाब नहीं तो फिर क्यों नहीं समझते
ख़तों के जरिये पास आना छोंड़ दो
मैं बेक़रार हूँ अब बेवज़ह मिलने के लिये
##
## #अभ्भू

आप ही कहो कैसे मैं चुप रहूँ..
"ख़त"
 बेनाम सा लगता है ना

कुछ कुछ फटा सा बिखरा सा
स्याहियों से भरा नीली लाल हरी गुलाबी
बहोत सारे रँग
पर
पर दिल के जज्बातों का कोई रँग नहीं होता
नहीं होता रँग शरारती आशाओं का
क्या पतझड़ का कोई रँग होता है
क्या दुःखते दिल की कोई धड़कन रँगीन होती है
नहीं ना

सबका जवाब नहीं तो फिर क्यों नहीं समझते
ख़तों के जरिये पास आना छोंड़ दो
मैं बेक़रार हूँ अब बेवज़ह मिलने के लिये
##
## #अभ्भू

आप ही कहो कैसे मैं चुप रहूँ..

अभ्भू आप ही कहो कैसे मैं चुप रहूँ..