क्या खोया है, एहसास नहीं यूँ पाया भी कुछ ख़ास नहीं दिल ने की फ़रियाद नहीं क्या भूले हैं, कुछ याद नहीं आते भी हैं, जाते भी हैं, जाने कितने मौसम दिन के बाद ही शाम आती है और फ़िर रात का आलम हो जाती है बरसात कहीं रह जाती है अनबुझ प्यास कहीं दिल ने की फ़रियाद नहीं क्या भूले हैं, कुछ याद नहीं तनहा - तनहा जी लेते हैं तनहा ही ख़ुश हो लेते हैं राहों से राह निकलती है हर जोख़िम सह लेते हैं हम हैं गुमसुम, नाशाद नहीं बेपरवाह हैं, बेताब नहीं दिल ने की फ़रियाद नहीं क्या भूले हैं, कुछ याद नहीं अपने - अपने ग़म होते हैं अपने-अपने सुख भी होते हैं रोते हैं हर बार न दर्द संजोते हैं कुछ कहने को अलफ़ाज़ नहीं कोई करता भी इंसाफ़ नहीं दिल ने की फ़रियाद नहीं क्या भूले हैं, कुछ याद नहीं क्या खोया है, एहसास नहीं यूँ पाया भी कुछ ख़ास नहीं दिल ने की फ़रियाद नहीं क्या भूले हैं, कुछ याद नही क्या खोया है, एहसास नहीं यूँ पाया भी कुछ ख़ास नहीं दिल ने की फ़रियाद नहीं क्या भूले हैं, कुछ याद नहीं आते भी हैं, जाते भी हैं, जाने कितने मौसम दिन के बाद ही शाम आती है