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हां मैं बहक जाता हूं कभी कभी, फिर रह ना पाता हूं त

हां मैं बहक जाता हूं कभी कभी,
फिर रह ना पाता हूं तुम्हे जो  मिला था कभी,
मैं वो हूं ही नहीं जो कर रहा हूं,
शायद सुकून की तलाश में हदों से गुज़र रहा हूं,

ना जाने अब ये कैसी रातें आती है,
सब आराम से सोते है मेरी आंख लग नही पाती है,
फिर सुकूं की तलाश में भटक जाता हूं,
तुझसे जो नहीं चाहता वही सुलूक कर जाता हूं,
चाहता तो हूं मैं तुझसे शिव सा प्रेम करू,
ना जाने कैसे खुद को खोकर बदल जाता हूं,
                             ✒️vinayrajput🖊️
तुझे छूकर भी अपवित्र करने की मेरी हसरत नही है,
ये जो मैं कर जाता हूं मेरी फितरत नहीं है,
मेरा इश्क तो कहीं परे है इन सब से,
जो मैं कर जाता हूं गुस्ताखियां ये मोहब्बत नहीं है,

मालूम है बुरा लगता है तुम्हे भी मेरा यूं बदल जाना,
तेरी एक मुस्कुराहट पे आपा खो देना और मचल जाना,
तेरे जिस्म का मुझे मोह जरा सा भी नही,
मैं सिर्फ मोहब्बत चाहता हूं ना चाहता इस कदर पिघल जाना।

©Vinay Rajput
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