सामाजिक सुधार और धार्मिक ग्रंथ सीट से प्रकाशित आलेख में लेखक संजीव सहित अन्य जिस मुद्दे को लेकर टिप्पणी की है वह आज के दौर में सोचने योग्य है साथ ही वरिष्ठ सांसदों सहित मंत्रिमंडल को भी इस विमर्श पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि जिस तरह से हम अपने देश में पंथनिरपेक्ष साथी की ओर ले जा रहे हैं जाहिर सी बात है कई मंत्री पद्धति बदल जाएगी प्रश्न ये उठता है कि आज के समय में समाज को विकसित करने के लिए यदि पवित्रता गीत कुरान बाइबल सहित धर्म ग्रंथों के पास जाना पड़े तो यह उचित है देखिए जाए तो समाज को विकसित करने में धर्म ने किस प्रकार की बाधा नहीं है बल्कि कुछ ऐसी पड़ता है बनी हुई है तो आज आधुनिकीकरण में रुकावट ला रही है इसका हाली उदाहरण है जहां विवाद है कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक साफ कर दिया था कि हिजाब इस्लाम का मुकेश से नहीं है इसका अर्थ यह है कि इसके बाद जोड़ा गया था इसका इस्लामिक धर्म ग्रंथ में जिक्र नहीं है लेखक ने सामाजिक सुधार को लेकर अरोड़ा भी बनी हुई पुरानी विचारधारा जो आज के समय में अनावश्यक स्थिति को बदलना ही होगा ©Ek villain #रूढ़िवादी होने से बचे #writing