खुली किताब सा हूँ गर पढ़ना चाहो, कुछ भी नही समझना है गर समझना चाहो। बेकार की सारी तुम करती क़वायद हो, बस आम सा रिश्ता रखो गर रखना चाहो। #रिश्ता#क़िताब