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"वहम - दिल का" (ग़ज़ल) तमाम वहम को यूँ जेहन से न

"वहम - दिल का" (ग़ज़ल) 

तमाम वहम को यूँ जेहन से निकाला जाए
चलो वक़्त के सांचे में खुद को ढाला जाए

अपने साये को सनम ज़रा कर तो एक तरफ
मेरी अँधेरी जिंदगी में थोड़ा सा उजाला आए

उसने बहुत उँगलियाँ की है गर्दिशों में हमें 
चलो अब उसके गिरेबां में हाथ डाला जाए

बहुत हुयी उनसे यूँ दुआ-ओ-मिन्नत की रस्म 
गवारा नहीं के हक़ीक़त को और टाला जाए

मौसम-ओ-इन्सां से वाकिफ हो चुके हो ग़र
ज्यादा बेहतर होगा, कोई कुत्ता ही पाला जाए

बहुत बहक लिए हम पीकर ज़ाम फरेब के
चल सनम अब ख़ुद को ज़रा सम्भाला जाए
                       ©technocrat_sanam  "वहम - दिल का" (ग़ज़ल) 

तमाम वहम को यूँ जेहन से निकाला जाए
चलो वक़्त के सांचे में खुद को ढाला जाए

अपने साये को सनम ज़रा कर तो एक तरफ
मेरी अँधेरी जिंदगी में थोड़ा सा उजाला आए
"वहम - दिल का" (ग़ज़ल) 

तमाम वहम को यूँ जेहन से निकाला जाए
चलो वक़्त के सांचे में खुद को ढाला जाए

अपने साये को सनम ज़रा कर तो एक तरफ
मेरी अँधेरी जिंदगी में थोड़ा सा उजाला आए

उसने बहुत उँगलियाँ की है गर्दिशों में हमें 
चलो अब उसके गिरेबां में हाथ डाला जाए

बहुत हुयी उनसे यूँ दुआ-ओ-मिन्नत की रस्म 
गवारा नहीं के हक़ीक़त को और टाला जाए

मौसम-ओ-इन्सां से वाकिफ हो चुके हो ग़र
ज्यादा बेहतर होगा, कोई कुत्ता ही पाला जाए

बहुत बहक लिए हम पीकर ज़ाम फरेब के
चल सनम अब ख़ुद को ज़रा सम्भाला जाए
                       ©technocrat_sanam  "वहम - दिल का" (ग़ज़ल) 

तमाम वहम को यूँ जेहन से निकाला जाए
चलो वक़्त के सांचे में खुद को ढाला जाए

अपने साये को सनम ज़रा कर तो एक तरफ
मेरी अँधेरी जिंदगी में थोड़ा सा उजाला आए