पैसों से ही नहीं होता शहर में सहर, शाम को दर पर दिया भी तो जले मेरे शहर में सिर्फ पैसे से , अब कोई ख़ुश- हाल भी नहीं रहा किसके इज्जत पर आंच आईं , किसके गिरेबान पर डांका पड़ा मेरे शहर में ऐसा पड़ोसी , अब कोई ऐसा कोतवाल भी नहीं रहा देख कर मुंह फेर लेते है , वक़्त से जूझ रहे मेरे रिश्तेदार शहरी मसला अजीब सा है शहर का , यहां गांव सा हालचाल भी नहीं रहा दीवारें ऊंची हो रही हैं, घर के चार - दिवारी की हर रोज बगल में कौन घूंट - घूंट के मर रहा है , मेरे शहर को ये ख्याल भी नहीं रहा उलझे हुए है सब के सब , सोशल साइट्स की जाल में अब चौराहे पर ठहाके सुनाई नहीं देते , अब कोई कोलाहल भी नहीं रहा मुश्किल से देखने को मिलती है , माटी में खेलते बच्चे शहर में बच्चो की कहानियों में , अब विक्रम - बैताल भी नहीं रहा पुराने घर में ही पुराने , मां- बाप को छोड़ आए हैं इस पाप का मेरे शहर को , अब मलाल भी नहीं रहा रिश्ता तोड़ देते है , चंद नोक - झोंक में भावनाएं और वादे इस शहर में , अब कोई सम्हाल भी नहीं रहा निकलते है नाश्ता कर के , खाने के वक़्त पर लौट आते है गर्मी की छुट्टियों वाला , शहर में ननिहाल भी नहीं रहा गांव को देहात कह हसने वाले , क्या यही तरक्की है मेरे शहर की शहर वालो को शहरी कहने का , अब बचा कोई मिसाल भी नहीं रहा पेशा मोहब्बत था, शौक नहीं मेरा , ऐसे पेशवाई से लाचार मेरे सिवा मेरे शहर में, अब कोई बदहाल भी नहीं रहा #poeticPandey #GAURAVpandeyPoet #MeraShehar 2 पैसों से ही नहीं होता शहर में सहर, शाम को दर पर दिया भी तो जले मेरे शहर में सिर्फ पैसे से , अब कोई ख़ुश- हाल नहीं रहा किसके इज्जत पर आंच आईं , किसके गिरेबान पर डांका पड़ा मेरे शहर में ऐसा पड़ोसी , अब कोई ऐसा कोतवाल भी नहीं रहा देख कर मुंह फेर लेते है , वक़्त से जूझ रहे मेरे रिश्तेदार शहरी