मनुज कुढ़न प्रतिवासी करता मानुष के ध्रुव से क्यो कुढ़न , खुद क्लेश जिन्दगी न कर पाता निर्वाहन। निज अचल से है अनजान, फिर भी करते प्रतिवासी जिंदगी में अड़चन। निज हयात की सुवास करते निः सार, जिंदगी के लाजमी रफ्तार करते बेकार। अचल,वैभव,आमोद-प्रमोद करते बे घर सच तो यह है-- है-प्रतिवासी जलती दीपक बाती क्षण भर में भंगुर हो जाते। हैं-ध्रुव पूर्ण,innocent प्राणी अगरबत्ती हैं रहता महकता--- रचयिता - हरिओम मौर्य 17/06/2020 #sunrays मानुष कुढ़न