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जिंदगानी बिखर गई है, कभी ढूंढते थे खयालों की गर्दि

जिंदगानी बिखर गई है,
कभी ढूंढते थे खयालों की गर्दिश में जिसे
वो आज बिछड़ सी गई है,
मेरी खुशियां आज मुझसे दूर हो रही है
हम जी रहे थे ख्वाबों में
आज हकीकत से रूबरू से हुए है
मेरे जज़्बात भी उलट गए है
अपने आप से उलझती कश्मकशो से
अब दूर से रहेने लगे है
हां हम कुछ अलग से होने लगे है
अपने आपको बनाते बनाते 
खुद ही सवरने लगे है।

©Purnima Patil
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