तुम वापस मत आना सुनो तुम अब गांव में ही बस जाना दो सुखी रोटी खाना पर वापस ना आना जानता हूं गांव की जमीन गिरवी रख आए थे । पर छुड़ाने को कुछ जोड़ नहीं पाए तुम दिन लगाना रात को घटाना पर वापस न आना । जानता हूं मां को वादा कर आए थे बहिन की शादी का खर्चा जोड़ने का मेहमान चार बुलाना मोहब्बत से थोड़ा ही खिलाना पर वापस ना आना हमने गंदी गालियां दी थी ना रहने को तुम्हे तुम्हारी खोली चुती थी न। किसी बड़ी बिल्डिंग के बाजू में स्कूल अलग थे न तुम्हारे बच्चो के तुम न जाने किस किस को हफ्ता चुकाते थे। ओर तुम्हे दिन हिन्न गरीब बेचारे कहते थे न खुद घरों में घुसकर तुम्हे सड़कों पर भूखा पैदल चलने के लिए मजबूर किया था न । बस !अब तुम वापस ना आना यकीन मानना यह सारे शब्द बदलेंगे बेचारा कों न। है अब शायद समझेंगे। #alone #poem #Hindi