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लालिमा की चादर ओढ़े, जब साँझ गोधूलि बेला के साथ आत

लालिमा की चादर ओढ़े, जब साँझ गोधूलि बेला के साथ आती है।
दिन साँझ के रंगों में रंगकर, तब और खूबसूरत सा लगने लगता है।

पशु- पक्षी अपने घर घरौंदों को, खुशियों के संग वापस आने लगते हैं।
चहकता सा संसार और चहल-पहल से भरा, हर घर-आंगन लगता है।

निशा का अंधेरा मिटाने की खातिर, जब साँझ का दीपक जलता है।
साँझ ढले तब मन मुस्कुराता है और श्रृंगारित सा जीवन लगता है।
 👉साँझ - शाम ,evening 
👉 #collabwithपंचपोथी 
👉 collab करके comment में done लिखे।
👉bio में दी गयी link पर जाकर panchpothi.blogspot.com का अवलोकन करे।
👉हमसे सोशल मीडिया पर जुड़े तथा अपनी रचना हमारे facebook group में share करे।
👉समय अवधि - 24 घन्टे तक
👉शब्द सीमा - अनिश्चित 
 Blogger #पंचपोथी #साँझ_पंचपोथी
लालिमा की चादर ओढ़े, जब साँझ गोधूलि बेला के साथ आती है।
दिन साँझ के रंगों में रंगकर, तब और खूबसूरत सा लगने लगता है।

पशु- पक्षी अपने घर घरौंदों को, खुशियों के संग वापस आने लगते हैं।
चहकता सा संसार और चहल-पहल से भरा, हर घर-आंगन लगता है।

निशा का अंधेरा मिटाने की खातिर, जब साँझ का दीपक जलता है।
साँझ ढले तब मन मुस्कुराता है और श्रृंगारित सा जीवन लगता है।
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