सुलग रहे हो आप भीतर,जल रहे अरमान मेरे. बैठ नदिया के किनारे.देखे कु़दरत के नजारे! समझो ना ये इक नदी सी. बह रही हे जि़न्दगानी. अरमानों के दो किनारे .प्यासी हे रूत भी सुहानी! आग ने जल कर सिखाया.ऊंचाईयॉ तू नाप ले. राख़ तो होना हे निश्चित.अमर कर ले जि़न्दगानी! जगदीश निराला मॉगरोल प्यासी आग