आज फिर से मैं खुद अनबन कर बैठा और निकल पड़ा अकेले डल के उस किनारे पर जहाँ कभी तुम्हारा हाथ थाम कर सुकूँ जिया करता था सुकूँ गर्म छल्ली पर लगे नींबू और लहसून के नामक सा सुकूँ जिस से जिंदगी की मिठास दोगुनी हो जाती हैं और गर्म हथेलियों पर सरकती हरारत बालों से लिपट कर जन्नत तराशती हैं सुकूँ जो पानी पर चप्पू से जिंदगी उकेरता है और लहर बन कर सहील को समेट लेता है तुम्हारे जाने के बाद मुझे फिर से इश्क़ हो चला है तुम्हारी यादों से कौन कहता है अंधेरों में बरकत नहीं होती अब ख़ामोशी को कहने दो @ बरकत ©Mo k sh K an #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो #mokshkan