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आज फिर से मैं खुद अनबन कर बैठा और निकल पड़ा अकेले

आज फिर से मैं खुद अनबन कर बैठा 
और निकल पड़ा अकेले 
डल के उस किनारे पर 
जहाँ कभी तुम्हारा हाथ थाम कर 
सुकूँ जिया करता था 

सुकूँ
गर्म छल्ली पर लगे नींबू और लहसून के नामक सा सुकूँ 
जिस से जिंदगी की मिठास दोगुनी हो जाती हैं 
और गर्म हथेलियों पर सरकती हरारत 
बालों से लिपट कर जन्नत तराशती हैं 

सुकूँ 
जो पानी पर चप्पू से जिंदगी उकेरता है 
और लहर बन कर सहील को समेट लेता है 

तुम्हारे जाने के बाद 
मुझे फिर से इश्क़ हो चला है 
तुम्हारी यादों से
कौन कहता है अंधेरों में बरकत नहीं होती 

अब ख़ामोशी को कहने दो @ बरकत

©Mo k sh K an #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#mokshkan
आज फिर से मैं खुद अनबन कर बैठा 
और निकल पड़ा अकेले 
डल के उस किनारे पर 
जहाँ कभी तुम्हारा हाथ थाम कर 
सुकूँ जिया करता था 

सुकूँ
गर्म छल्ली पर लगे नींबू और लहसून के नामक सा सुकूँ 
जिस से जिंदगी की मिठास दोगुनी हो जाती हैं 
और गर्म हथेलियों पर सरकती हरारत 
बालों से लिपट कर जन्नत तराशती हैं 

सुकूँ 
जो पानी पर चप्पू से जिंदगी उकेरता है 
और लहर बन कर सहील को समेट लेता है 

तुम्हारे जाने के बाद 
मुझे फिर से इश्क़ हो चला है 
तुम्हारी यादों से
कौन कहता है अंधेरों में बरकत नहीं होती 

अब ख़ामोशी को कहने दो @ बरकत

©Mo k sh K an #अब_ख़ामोशी_को_कहने_दो 
#mokshkan
shonaspeaks4607

Mo k sh K an

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