मैं बाचूँ का विरह वेदना सखीं विरहन गाथा ई न्यारौ लुट-पाट म्हार चित्त चोरी होग्यों सखीं गोकुला चोर पधारौ ह्यों प्रेम प्रतीति ऐसो हमारौ लोक-लाज बिसरायों पिय की बंशी रही-रही बाजे मोसे नाचे बीन न रही जायो नज़र मिलावन पिया से आयी फिरि काहे को घूँघटा काढूँ रै सासर दिख्यों बीच बजारि थे जानों सखीं गिरधर आगे नाचूँ मैं राणों जे अड़े बड़े खिसियाने लोका ताना मारेगो नीर-मीन जस प्रीत हमारौ सखीं जग ई मुआ समझ न पावैगों श्री गिरधर गोपाल।