प्यार का इक मजहब बनाना चाहा तो अपने ही विरोधी हो गए, जो कभी मांगते थे हमारी सलामती की दुआएं, आज हमें बदुआएं दे गए, जंग जीत जाते हम भी प्यार की, कमबख्त उनकी फ्रिक में तन्हा रह गए।। devbrat#62