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बहुत उलझन होती है सोच कर कि ये सब क्या तमाशा है। ज

बहुत उलझन होती है सोच कर कि ये सब क्या तमाशा है।
जन्म लिये थे क्या और जीवन ने अपनी खरोंचों से क्या तराशा है।।
कौन हूं मैं ,ये बंधन कैसा ,
क्यों हूँ मैं, हृदय में यह प्रश्न उठता सहसा ।
ये जन्म जीवन का आरम्भ है या किसी अंत का आगाज़?
ये सवयं में यथेष्ट है या प्रकृति के जीवन सुधा की मोहताज?
बहुत सरल है त्याग या फिर परम कठिन?
मानो तो बड़ा सरल नहीं तो त्याग भी होता विषाद से मलिन।
समर्पण क्या है और कीसके लिए?
तर्पण क्या है और किसके लिए?
महत्वपूर्ण कौन - तुम, मैं या कोई भी नहीं?
मिथ्या जीवन क्यों लगती हरबार सही?
ये क्रन्दन क्यों और किसके लिए?
ये वंदन क्यों और किसके लिए?
रागी हूँ या बैरागी हूँ 
या दुनिया की अनुयाई हूं?
मैं अणु सा सूक्ष्म,या ब्रह्माण्ड सा विस्तार।
अपनी परिभाषा भी क्यों है मुझे अस्वीकार?
नेत्र होते हुए भी नेत्रहीन सा मुझको आभास क्यों?
आते जाते राहगीरों में ख़ुद की मुझको तलाश क्यों?

©Dhuni #Life #Nojoto #Dhuni
#standAlone
बहुत उलझन होती है सोच कर कि ये सब क्या तमाशा है।
जन्म लिये थे क्या और जीवन ने अपनी खरोंचों से क्या तराशा है।।
कौन हूं मैं ,ये बंधन कैसा ,
क्यों हूँ मैं, हृदय में यह प्रश्न उठता सहसा ।
ये जन्म जीवन का आरम्भ है या किसी अंत का आगाज़?
ये सवयं में यथेष्ट है या प्रकृति के जीवन सुधा की मोहताज?
बहुत सरल है त्याग या फिर परम कठिन?
मानो तो बड़ा सरल नहीं तो त्याग भी होता विषाद से मलिन।
समर्पण क्या है और कीसके लिए?
तर्पण क्या है और किसके लिए?
महत्वपूर्ण कौन - तुम, मैं या कोई भी नहीं?
मिथ्या जीवन क्यों लगती हरबार सही?
ये क्रन्दन क्यों और किसके लिए?
ये वंदन क्यों और किसके लिए?
रागी हूँ या बैरागी हूँ 
या दुनिया की अनुयाई हूं?
मैं अणु सा सूक्ष्म,या ब्रह्माण्ड सा विस्तार।
अपनी परिभाषा भी क्यों है मुझे अस्वीकार?
नेत्र होते हुए भी नेत्रहीन सा मुझको आभास क्यों?
आते जाते राहगीरों में ख़ुद की मुझको तलाश क्यों?

©Dhuni #Life #Nojoto #Dhuni
#standAlone
jyotiarya1581

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