राह ए तलब मैं भी कितना बदनाम हुआ अपनी शराफत से भी अनजान हुआ बरसों की दोस्ती का अंज़ाम इक तमाशा हुआ आपसे दोस्ती का हस्र वीरान हुआ सोचा था किसी रोज दिल से मिलेंगे आपसे मेरी दोस्ती का चलन हैरान हुआ दिल में तेरी याद का कांटा चुभ गया था उसे निकालने में मैं खुद बदनाम हुआ तू भी मंज़िल ए हयात से आगे निकल गया मुझे भी दिल जला के नुक़सान हुआ 🐱मेरी स्वरचित प्यारी ग़ज़ल मंज़िल ए हयात🐱 ©Prem Narayan Shrivastava #मंज़िल ए हयात #RailTrack