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बरसात की शाम (अनुशीर्षक में पढ़ें) बरसात की शाम

बरसात की शाम 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) बरसात की शाम 

सर्दियों की वो ठिठुरती शाम, ठंड के मारे बुरा हाल था। मैं अपने बच्चों के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहीं थी।  हम लोग शाम शादी में शामिल होने निकले ही थे कि यकायक काले बादाम घिर के आए और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। ठंड पहले ही थी, बारिश से और भी महसूस होने लगी। वैसे तो हम अपनी कार में थे पर बारिश की तेज़ी को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि बाहर ठंड का क्या हाल होगा। एक तो बारिश ऊपर से ट्रैफिक जाम। जगह जगह पानी भरने की वज़ह से सारा ट्रैफिक मानो रुक सा गया था। 
अचानक मेरी नज़रे पटरी पर ठिठुरते एक परिवार पर पड़ी। माँ और उसके दो छोटे-छोटे बच्चे। एक तिरपाल ओढ़ कर ख़ुद को बारिश और ठंड से बचाने की कोशिश वो कर रहे थे।  उपयुक्त गर्म कपड़े भी नहीं पहन रखे थे उन्होंने। माँ भरसक प्रयास कर रही थी कि बच्चों को किसी तरह से सर्दी में कुछ तो राहत दे सके। 
उनकी ये स्थिति देखकर मैं सोच में पड़ गई। कितने किस्मत वाले हैं हम कि हमारे पास रहने को घर, पहनने को कपड़े और खाने को खाना है। सब कुछ होते हुए भी हम खुश नहीं रहते। और ज़्यादा की लालसा लिए असंतुष्ट जीवन जीते रहते हैं। आख़िर हम चाहते क्या हैं? हर समय हमें ज़िंदगी और भगवान से शिकायत ही क्यूँ रहती है?
मेरे बच्चे भी उन माँ बच्चों के संघर्ष को देख रहे थे। मेरी बेटी मुझसे बोली, मम्मी क्या हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते? मैं भी अपनी सोच से बाहर आई। मैं बोली, हाँ क्यूँ नहीं।  हमारे पास दो छतरियाँ और मेरे व बच्चों के लिए गर्म कपड़े थे। कुछ खाना भी था। वो सब मैंने उन माँ बच्चों को दे दिया। वो सब चीज़ें पाकर उनके चेहरे की खुशी देखने वाली थी। उस माँ की आँखों में खुशी के आँसू मैं साफ़-साफ़ देख सकरी थी। 
तब तक बारिश भी रुक गई थी। ट्रैफिक भी चलने लगा था। हमने जाते-जाते देखा कि उन तीनों ने हमारे दिए कपड़े पहन लिए थे और वो खाना खा रहे थे। एक अजीब से सुख की अनुभूति मुझे हो रही थी। हम भी विवाह स्थान की ओर निकल पड़े। 
उस बरसात की शाम की इस घटना ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया। मैंने इश्वर का धन्यवाद किया जिन्होंने एक सुखी जीवन के लिए मुझे क्या कुछ नहीं दिया। उस दिन से मैंने ज़िंदगी और भगवान से शिकायत करनी भी छोड़ दी।
बरसात की शाम 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) बरसात की शाम 

सर्दियों की वो ठिठुरती शाम, ठंड के मारे बुरा हाल था। मैं अपने बच्चों के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहीं थी।  हम लोग शाम शादी में शामिल होने निकले ही थे कि यकायक काले बादाम घिर के आए और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। ठंड पहले ही थी, बारिश से और भी महसूस होने लगी। वैसे तो हम अपनी कार में थे पर बारिश की तेज़ी को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि बाहर ठंड का क्या हाल होगा। एक तो बारिश ऊपर से ट्रैफिक जाम। जगह जगह पानी भरने की वज़ह से सारा ट्रैफिक मानो रुक सा गया था। 
अचानक मेरी नज़रे पटरी पर ठिठुरते एक परिवार पर पड़ी। माँ और उसके दो छोटे-छोटे बच्चे। एक तिरपाल ओढ़ कर ख़ुद को बारिश और ठंड से बचाने की कोशिश वो कर रहे थे।  उपयुक्त गर्म कपड़े भी नहीं पहन रखे थे उन्होंने। माँ भरसक प्रयास कर रही थी कि बच्चों को किसी तरह से सर्दी में कुछ तो राहत दे सके। 
उनकी ये स्थिति देखकर मैं सोच में पड़ गई। कितने किस्मत वाले हैं हम कि हमारे पास रहने को घर, पहनने को कपड़े और खाने को खाना है। सब कुछ होते हुए भी हम खुश नहीं रहते। और ज़्यादा की लालसा लिए असंतुष्ट जीवन जीते रहते हैं। आख़िर हम चाहते क्या हैं? हर समय हमें ज़िंदगी और भगवान से शिकायत ही क्यूँ रहती है?
मेरे बच्चे भी उन माँ बच्चों के संघर्ष को देख रहे थे। मेरी बेटी मुझसे बोली, मम्मी क्या हम उनके लिए कुछ नहीं कर सकते? मैं भी अपनी सोच से बाहर आई। मैं बोली, हाँ क्यूँ नहीं।  हमारे पास दो छतरियाँ और मेरे व बच्चों के लिए गर्म कपड़े थे। कुछ खाना भी था। वो सब मैंने उन माँ बच्चों को दे दिया। वो सब चीज़ें पाकर उनके चेहरे की खुशी देखने वाली थी। उस माँ की आँखों में खुशी के आँसू मैं साफ़-साफ़ देख सकरी थी। 
तब तक बारिश भी रुक गई थी। ट्रैफिक भी चलने लगा था। हमने जाते-जाते देखा कि उन तीनों ने हमारे दिए कपड़े पहन लिए थे और वो खाना खा रहे थे। एक अजीब से सुख की अनुभूति मुझे हो रही थी। हम भी विवाह स्थान की ओर निकल पड़े। 
उस बरसात की शाम की इस घटना ने मुझे पूरी तरह से बदल दिया। मैंने इश्वर का धन्यवाद किया जिन्होंने एक सुखी जीवन के लिए मुझे क्या कुछ नहीं दिया। उस दिन से मैंने ज़िंदगी और भगवान से शिकायत करनी भी छोड़ दी।
poonamsuyal2290

Poonam Suyal

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