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हर सुबह उनका चेहरा धुंधला दिखाई पड़ता है। आँखें मल

हर सुबह उनका चेहरा धुंधला दिखाई पड़ता है। आँखें मलता रहता हूँ
पर उनका चेहरा पहचान में नहीं आता। उसका चेहरा पहचान सकूँ
और फिर से अपनी याद में ला सकूँ उसके लिए मैं उनकी गली में
चला जाता हूँ कि उन्हें जानने वाला कोई मिल जाए। परंतु मेरे पास
उनका पूर्ण वृतांत भी नही। मेरे रोज़ के आने जाने से उनकी गली मुझे
धितकारने लगी है। उनकी गली के घर उनके घर से काफी मिलते
जुलते से है। और वहाँ के बरामदों में लगे पौधे बड़े बदतमीज़ से है।
जब भी उनके घर की रँगाईं को खोजता हूँ और उनकी दीवारों की और
आँकता हूँ तो वो मेरी लाचारी पर हँस पड़ते है और गुलाब के पौधे तो
लानत देने पर उतारू हो जाते है। मैं जब थक हार कर खुद के घर लौट
आता हूँ और हिम्मत हार चुका होता हूँ तो मुझे छत पर आसमान में
उनका चेहरा साफ दिखाई देने लग जाता है। सब यादें लौट आती है।
और धुँधला धुँआ छट जाता है।

©Prince_" अल्फाज़" #khyalo का पिटाराMansee Singh Rana Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ प्रशांत शकुन "कातिब" himanshi Singh Poetrywithakanksha Anshu writer
हर सुबह उनका चेहरा धुंधला दिखाई पड़ता है। आँखें मलता रहता हूँ
पर उनका चेहरा पहचान में नहीं आता। उसका चेहरा पहचान सकूँ
और फिर से अपनी याद में ला सकूँ उसके लिए मैं उनकी गली में
चला जाता हूँ कि उन्हें जानने वाला कोई मिल जाए। परंतु मेरे पास
उनका पूर्ण वृतांत भी नही। मेरे रोज़ के आने जाने से उनकी गली मुझे
धितकारने लगी है। उनकी गली के घर उनके घर से काफी मिलते
जुलते से है। और वहाँ के बरामदों में लगे पौधे बड़े बदतमीज़ से है।
जब भी उनके घर की रँगाईं को खोजता हूँ और उनकी दीवारों की और
आँकता हूँ तो वो मेरी लाचारी पर हँस पड़ते है और गुलाब के पौधे तो
लानत देने पर उतारू हो जाते है। मैं जब थक हार कर खुद के घर लौट
आता हूँ और हिम्मत हार चुका होता हूँ तो मुझे छत पर आसमान में
उनका चेहरा साफ दिखाई देने लग जाता है। सब यादें लौट आती है।
और धुँधला धुँआ छट जाता है।

©Prince_" अल्फाज़" #khyalo का पिटाराMansee Singh Rana Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ प्रशांत शकुन "कातिब" himanshi Singh Poetrywithakanksha Anshu writer