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दिल की बात उनसे जो कह ना सके, तो ऐसी सराफत का क्य

दिल की बात उनसे जो कह ना सके,
तो ऐसी सराफत का क्या फायदा,
नजरों से उनके जो न घायल हुए,
तो इतनी सजाअत  का क्या फायदा।
उन्होंने तो चाहा था बातें बढ़ाना,
तुम्हारे कदम से कदम को मिलाना,
साथ तुम्हारे यूहीं चलते  जाना,
खुद मुस्कुराना और तुमको हसाना,
नजरअंदाज उनको यूँही करते रहे,
तो ऐसी दिखावट का क्या फायदा।
अपने दिल की बंदिशों को तोड़ा नहीं,
सराफत की चादर को छोड़ा नहीं,
उनकी अदाओं को पढ़ ना सके,
 तन्हाई में भीं उनको छेड़ा नहीं।
दिल में उनके तुम्हारी कसक हीं नहीं,
तो फिर ऐसी अदावत का क्या फायदा,
हमने कहा पर वो समझ ना सके,
चले साथ-साथ, आगे पर बढ़ ना सके,
भाँप लेते हैं सबके इरादे मग़र,
 मेरे इसारों को वो पढ़ न सके 
मेऱ फेंके फूल से वो घायल हुए,
ऐसी नजाकत का क्या फायदा,
वो भीं बढ़ा सकते थे हाथ अपना,
पर इतनी शर्माहट का क्या फायदा,
 बोल सकता था मैं भीं दिल की बात,
पर इतनी सराफत का क्या फायदा।।
गणेश वर्मा...... मन की कलम से..

©Ganesh Kumar Verma #सराफत
दिल की बात उनसे जो कह ना सके,
तो ऐसी सराफत का क्या फायदा,
नजरों से उनके जो न घायल हुए,
तो इतनी सजाअत  का क्या फायदा।
उन्होंने तो चाहा था बातें बढ़ाना,
तुम्हारे कदम से कदम को मिलाना,
साथ तुम्हारे यूहीं चलते  जाना,
खुद मुस्कुराना और तुमको हसाना,
नजरअंदाज उनको यूँही करते रहे,
तो ऐसी दिखावट का क्या फायदा।
अपने दिल की बंदिशों को तोड़ा नहीं,
सराफत की चादर को छोड़ा नहीं,
उनकी अदाओं को पढ़ ना सके,
 तन्हाई में भीं उनको छेड़ा नहीं।
दिल में उनके तुम्हारी कसक हीं नहीं,
तो फिर ऐसी अदावत का क्या फायदा,
हमने कहा पर वो समझ ना सके,
चले साथ-साथ, आगे पर बढ़ ना सके,
भाँप लेते हैं सबके इरादे मग़र,
 मेरे इसारों को वो पढ़ न सके 
मेऱ फेंके फूल से वो घायल हुए,
ऐसी नजाकत का क्या फायदा,
वो भीं बढ़ा सकते थे हाथ अपना,
पर इतनी शर्माहट का क्या फायदा,
 बोल सकता था मैं भीं दिल की बात,
पर इतनी सराफत का क्या फायदा।।
गणेश वर्मा...... मन की कलम से..

©Ganesh Kumar Verma #सराफत