कुछ सपनो को साथ लेकर, यादें अपनों की पास लेकर ; हम घर से अपने दूर चले । हो करके हम मजबूर चले।। यादें अपनों की आएंगी, हमको बेहद तड़पाएंगी; जब तन्हाई में बैठेंगे, आँखे खुद नम हो जाएंगी। खाना पीना न भाएगा, जब याद मेरा घर आ जाएगा; मन मन ही मन घुट जाएगा। जब कोई अपने घर को जाएगा।। आपनो की डाँट को तरसेंगे, उनके हम साथ को तरसेंगे, जब ये सब सह ना पाएंगे; आँखों से पानी बरसेंगे। शायद अब ये हम सोचेंगे, ये सोच के खुद को कोसेंगे; हम इतने क्यों मजबूर हुए; जो घर से अपने दूर हुए। अपने कुछ सपनो की ख़ातिर, अपनों को पीछे छोड़ चले। इस ठोकर खाती दुनिया में; हम भी अब करने होड़ चले। एक आस का लेकर नूर चले; हो करके हम मजबूर चले। घर की याद