अर्थ का अनर्थ होने मे दैर कहाँ लगती हैं। आपकी लाखों अच्छाई पर भी, जीवन की एक गलती भारी पढ़ जाती हैं। बात जब निकलती हैं , तो तिल से ताड़ बनने मे दैर कहां लगती हैं। कोई नही हैं जो राई के दाने बटोरे यहाँ, यह दुनिया हैं, यहाँ राई का पहाड़ बनने मे दैर कहां लगती हैं। अपनी शख्सियत को निखारना आपको ही पड़ेगा, लोगों को यहां बाते बनाने मे दैर कहां लगती हैं। अपना अन्धेरा कोई देखता नही कभी भी, दुसरे के चिरागो की बुझती हुई लौ को भड़काने मे यहां किसी को दैर कहां लगती हैं। आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi #NojotoQuote अर्थ का अनर्थ होने मे दैर कहाँ लगती हैं। आपकी लाखों अच्छाई पर भी, जीवन की एक गलती भारी पढ़ जाती हैं। बात जब निकलती हैं , तो तिल से ताड़ बनने मे दैर कहां लगती हैं।