१* कभी पहाड़ो पर बर्फ़ से लदे चिनार लिखता कभी अधकटे देवदारों के ठूँठ लिखता तो कभी लिखता बाहें जो समेट लेती धुँआ..... २* कभी केश छूकर घने बादल लिखता कभी दर्पण कहकर बहती नदी कलकल लिखता कभी नूपुर कहकर चंचल बिजलियां लिखता तो, कभी नर्म आंच में अंगड़ाईयाँ लेती धकड़ने कहकर लचक के चलती रजत रश्मियां को लिखता कभी डगमगाती क़लम कहकर मौसम की बेरुखी लिखता तो, कभी यादों में सहमे नजारे कहकर सर्द हवाओं से सिकुड़े मैदान लिखता ३* कभी आंखों से गिरते आँसू कहकर टूटी फूटी दीवारों की सीलन लिखता कभी ऊँचे पहाड़ों की ढ़लान थामे कहकर बुड्ढा बरगद लिखता कभी पानी की बूंदे कहकर कुछ भीगें ख़त लिखता.... तो, कभी सफ़ेद क़फ़न कहकर बर्फ़ में दफ़न अंधड़ सन्नाटे को लिखता दिनों बीत गये थे....उसकी चिट्ठी फ़िर न आयी *२ थैंक्स फ़ॉर थे पोक - seha jain 🙏💚 #khamoshi #प्रेम #परछाइयाँ #ख़त #yqbaba #yqdidi #yqtales #maa १* इक़ माँ का २* इक़ पत्नी का ३* इक़ पिता का