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मुनाफा कमाकर निकला आदमी,सोचता है मैने खुशियां पा ल

मुनाफा कमाकर निकला आदमी,सोचता है मैने खुशियां पा ली!
फिर दुख मिटाने को उसने छोटी सी दुकान से चाय क्यों पी?
शायद वो खुशियां सिर्फ पल भर को टिकी थी,
पैसा जेब में जाने तक ही रुकी थी!
उन्हे भी तो दूसरे कमाने वाले के पास जाना था
उसके बाद थोड़ा आराम और फिर इंसान को सताना था!
दुख फुरसत में था इसलिए तुरंत आ गया
उसने कई रूप धारण किए हुए थे इसलिए सब में बंट गया।
लोगो ने आंसुओं से सींच कर उसे खूब बढ़ाया
उसने वृक्ष बनकर ,खूब फलों को उगाया
आसानी से मिल रहा था उसका फल सस्ते दाम में 
लोग थैले भर - भर कर ले आए और संग खाए भात में
अब भात को खाकर उसे कोसते है,
इसे खाकर दुख मिला ये सोचते है 
उन्हे अपने कर्मो की खबर ही नहीं है
अपनी जीभ पर सवार असुर की सुद तक नहीं है
ऐसे ही दुखों के पेड़ में फल उगते जा रहे है 
खुशियों की घर धीरे धीरे सिमटते जा रहे है
इनको अपने मन को दीवारों से बड़ा बनाओ "आकांक्षा"
फिर देखोगे स्वयं दुख के पेड़ मुरझा जायेगे। 
और खुशियों की बाघ चारों तरफ खुशबू फेलायेगे। For better read -
मुनाफा कमाकर निकला आदमी,सोचता है मैने खुशियां पा ली!
फिर दुख मिटाने को उसने छोटी सी दुकान से चाय क्यों पी?
शायद वो खुशियां सिर्फ पल भर को टिकी थी,
पैसा जेब में जाने तक ही रुकी थी!
उन्हे भी तो दूसरे कमाने वाले के पास जाना था
उसके बाद थोड़ा आराम और फिर इंसान को सताना था!
दुख फुरसत में था इसलिए तुरंत आ गया
मुनाफा कमाकर निकला आदमी,सोचता है मैने खुशियां पा ली!
फिर दुख मिटाने को उसने छोटी सी दुकान से चाय क्यों पी?
शायद वो खुशियां सिर्फ पल भर को टिकी थी,
पैसा जेब में जाने तक ही रुकी थी!
उन्हे भी तो दूसरे कमाने वाले के पास जाना था
उसके बाद थोड़ा आराम और फिर इंसान को सताना था!
दुख फुरसत में था इसलिए तुरंत आ गया
उसने कई रूप धारण किए हुए थे इसलिए सब में बंट गया।
लोगो ने आंसुओं से सींच कर उसे खूब बढ़ाया
उसने वृक्ष बनकर ,खूब फलों को उगाया
आसानी से मिल रहा था उसका फल सस्ते दाम में 
लोग थैले भर - भर कर ले आए और संग खाए भात में
अब भात को खाकर उसे कोसते है,
इसे खाकर दुख मिला ये सोचते है 
उन्हे अपने कर्मो की खबर ही नहीं है
अपनी जीभ पर सवार असुर की सुद तक नहीं है
ऐसे ही दुखों के पेड़ में फल उगते जा रहे है 
खुशियों की घर धीरे धीरे सिमटते जा रहे है
इनको अपने मन को दीवारों से बड़ा बनाओ "आकांक्षा"
फिर देखोगे स्वयं दुख के पेड़ मुरझा जायेगे। 
और खुशियों की बाघ चारों तरफ खुशबू फेलायेगे। For better read -
मुनाफा कमाकर निकला आदमी,सोचता है मैने खुशियां पा ली!
फिर दुख मिटाने को उसने छोटी सी दुकान से चाय क्यों पी?
शायद वो खुशियां सिर्फ पल भर को टिकी थी,
पैसा जेब में जाने तक ही रुकी थी!
उन्हे भी तो दूसरे कमाने वाले के पास जाना था
उसके बाद थोड़ा आराम और फिर इंसान को सताना था!
दुख फुरसत में था इसलिए तुरंत आ गया