सुबह भी हम थे शाम भी हम, बादशाह भी हम थे ग़ुलाम भी हम। सीधे रस्ते पे गिरना कोई हम से सीखे राह भी हम थे रहनुमां भी हम। एहसासों का रंगमंच निकली यह दुनिया, नाक़ीद भी हम थे कद्रदान भी हम। कुछ यूँ कटी महफ़िल-ए-ज़िन्दगी 'सेठी', मेहमान भी हम थे और मेज़बान भी हम। #shayar #shayari #udhaarkelafz #poetry