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व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर, घड़ी-घड़ी जहां उपहास

व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर,
 घड़ी-घड़ी जहां उपहास होने लगे ।
तन भूख छोड़ें प्यास के आश्रय में,
 मन घुट घुट के अंदर रोने लगे।।

 स्वतः  फिर उपासना जागती है,
 चेतना ,सबसे विपासना मांगती है

©Abhidev - Arvind Semwal व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर,
 घड़ी-घड़ी जहां उपहास होने लगे ।
तन भूख छोड़ें प्यास के आश्रय में,
 मन घुट घुट के अंदर रोने लगे।।

 स्वतः  फिर उपासना जागती है,
 चेतना ,सबसे विपासना मांगती है
व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर,
 घड़ी-घड़ी जहां उपहास होने लगे ।
तन भूख छोड़ें प्यास के आश्रय में,
 मन घुट घुट के अंदर रोने लगे।।

 स्वतः  फिर उपासना जागती है,
 चेतना ,सबसे विपासना मांगती है

©Abhidev - Arvind Semwal व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर,
 घड़ी-घड़ी जहां उपहास होने लगे ।
तन भूख छोड़ें प्यास के आश्रय में,
 मन घुट घुट के अंदर रोने लगे।।

 स्वतः  फिर उपासना जागती है,
 चेतना ,सबसे विपासना मांगती है