व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर, घड़ी-घड़ी जहां उपहास होने लगे । तन भूख छोड़ें प्यास के आश्रय में, मन घुट घुट के अंदर रोने लगे।। स्वतः फिर उपासना जागती है, चेतना ,सबसे विपासना मांगती है ©Abhidev - Arvind Semwal व्यक्त न हो सके अवसाद खुलकर, घड़ी-घड़ी जहां उपहास होने लगे । तन भूख छोड़ें प्यास के आश्रय में, मन घुट घुट के अंदर रोने लगे।। स्वतः फिर उपासना जागती है, चेतना ,सबसे विपासना मांगती है