ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है, साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है। ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया, दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी तलवार होती जा रही है। यक़ीनन मेरी जिंदगी एक खुली क़िताब जैसी है, मेरा सफ़र उन सवालों की ताबीर होती जा रही है। तेरे सवालों का शोर इस क़दर फैला है मेरे ज़हन में, मेरी आँखें तेरे जवाबों का पैगाम होती जा रही है। सोचता हूँ नज़रें बदल लें या फिर नज़रिया अपना, ग़म-ए-इश्क़ मेरे नज़रों का इल्ज़ाम होती जा रही है। अब तो दरख्तों पर भी नए नए फूल उग आए है, एक उम्मीद ही है मेरी जो अब तक मुरझा रही है। तक़दीर की स्याही से लिखीं और ज़िन्दगी होगी आशु, तभी ज़िंदगी रोज़ नया इश्तिहार होती जा रही है। कैप्शन में भी पढ़े।👇 ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है, साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है। ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया, दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी तलवार होती जा रही है।