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ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है,
साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है।
ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया,
दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी तलवार होती जा रही है।
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