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गर्मी लेकर आ गई, बेबशियों के पल। घर बाहर लगता नहीं

गर्मी लेकर आ गई, बेबशियों के पल।
घर बाहर लगता नहीं, अब तो मेरा दिल।।
                गमछा ओढ़ें पर जले, कोमल कोमल रूप।
                तनिक रहम करती नहीं, मई जून की धूप।।
आंधी आई उड़ गया, एक गरीब का कूप।
एसी में बैठा पिये, कोई मीठा जूस।।
                 गरम थपेड़े लग रहे, ज्यों भट्टी की आग।
                 ऐसे में भाता नहीं, कोई मीठा राग।।
टप टप तन से चुअत है, मोटी सी ये धार।
थोड़ी राहत देत हैं, खीरा ककड़ी आम।।
               धरती चटकी पड़ी है, सूख गए हैं कूप।
               बेबश आंखें निरखती, प्रकृति का यह रूप।।
नीमरिया की छांव में, आवै थोड़ी नींद।
मटके का पानी लगे, ज्यों अमृत की बूंद।।
                    ~ मनोज कुमार "मंजू"
                      📱९७१९४६९८९९ #manojkumarmanju
#manju
#hindipoems
गर्मी लेकर आ गई, बेबशियों के पल।
घर बाहर लगता नहीं, अब तो मेरा दिल।।
                गमछा ओढ़ें पर जले, कोमल कोमल रूप।
                तनिक रहम करती नहीं, मई जून की धूप।।
आंधी आई उड़ गया, एक गरीब का कूप।
एसी में बैठा पिये, कोई मीठा जूस।।
                 गरम थपेड़े लग रहे, ज्यों भट्टी की आग।
                 ऐसे में भाता नहीं, कोई मीठा राग।।
टप टप तन से चुअत है, मोटी सी ये धार।
थोड़ी राहत देत हैं, खीरा ककड़ी आम।।
               धरती चटकी पड़ी है, सूख गए हैं कूप।
               बेबश आंखें निरखती, प्रकृति का यह रूप।।
नीमरिया की छांव में, आवै थोड़ी नींद।
मटके का पानी लगे, ज्यों अमृत की बूंद।।
                    ~ मनोज कुमार "मंजू"
                      📱९७१९४६९८९९ #manojkumarmanju
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