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कहना तो चाहा बहुत पर, हम कह न उससे पाए..! जज़्बात

 कहना तो चाहा बहुत पर,
हम कह न उससे पाए..!

जज़्बाती इश्क़ में,
मोहब्बत को कौन निभाए..!

घुट घुट कर सहते रहे,
दुःख की लहर में बहते रहे..!

बिना किसी स्वार्थ के कोई,
किसे क्यों आख़िर समझाए..!

अनकही दास्ताँ है ख़ुदा का वास्ता,
नज़र आता नहीं कहीं हमें रास्ता..!

अंधेर नगरी चौपट राजा है,
राह-ए-तरक्की कैसे पाएँ..!

सुनने वाला कोई नहीं,
सुनाने की ज़ुबानी बताएँ..!

रोते रहे हम खोते रहे रौशनी नैनों की,
ज़िन्दगी तमस में ताश सा ढहाए..!

सुख के समुन्दर में जीवन को,
प्रेम की गँगा सा सदा बहाये..!

©SHIVA KANT
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