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आँखे बयाँ नहीं थी, दिल की ज़ुबाँ नहीं थी। तुमने लिख

आँखे बयाँ नहीं थी, दिल की ज़ुबाँ नहीं थी।
तुमने लिखा था जो कुछ खामोश पढ़ रही थी।
दुनियाँ किताबी मेरी, सियाहे की सही थी,
ये रंगो रोशनी की चाहत ही ना रही थी।
बादल की तरह बरसा उग आया रंगधनुष सा,
झिलमिल से ख़्वाब की इतनी सी ज़िन्दगी थी? #deceptivedreams
आँखे बयाँ नहीं थी, दिल की ज़ुबाँ नहीं थी।
तुमने लिखा था जो कुछ खामोश पढ़ रही थी।
दुनियाँ किताबी मेरी, सियाहे की सही थी,
ये रंगो रोशनी की चाहत ही ना रही थी।
बादल की तरह बरसा उग आया रंगधनुष सा,
झिलमिल से ख़्वाब की इतनी सी ज़िन्दगी थी? #deceptivedreams