मौन कब तक जी सकोगे ये बता दो। रैन कब तक पी सकोगे यह सुना दो। अब प्रलय की रश्मि को लाना पड़ेगा। क्रूरतम वीभत्स को जाना पड़ेगा। तिल-मिलाने से नहीं अब काम चलता। जी चुराने से नहीं अब काम चलता। लोग सपनों की नई दुनिया बसाते। पर सृजन के नाम कोसों दूर जाते। सत्य है ये व्याल घर में ही पले हैं। मुख कुचल दो ऐंठ कर लगते भले हैं। पय पिलाने से नहीं अब काम चलता। जी चुराने से नहीं अब काम चलता।