एक बार की नहीं, हर बार की बात है किरदार बदल रहे है, पर कहानी वही है जब भी पीछे मुड़ के देखो, पन्ने खून से सने है, किसी की आंखे नम्म है, किसी का हौसला मरा है।। जस्टिस की मांग रुकने से नी रुक रही। पर होगा क्या, फिर एक नया दिन होगा फिर एक पुरानी कहानी होगी, एक नए किरदार के साथ।।। क्या यही चाहिए हमको, क्या इतने भर से बदलाव की कल्पना कर सकते है हम?? एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी बस यही तो चलता रहेगा।। । । क्या बस सरकार को दोष देना ही काफी है??? क्या बस प्रशासन को कहना काफी है??? क्या बदलाव बस यही कर सकते है?? क्या हम इस ओर कुछ नहीं कर सकते??? ये हमको सोचना होगा।इसके लिए कदम हमको उठाना होगा।। ©___akankshas__ #unpredictableink