धीमी धीमी उलझन जिंदगी की, सुलझाने में यहां है सभी मग्न, आजाद बैठ कर कहीं किनारे, खुद को हवाले हवा के कर दिए, फूलो की ख़ुशी देख , तितलियों के लेख कर दिए, बारिशों में बूंदे पत्तों पर रह गई , अपने फिर बरसने का बारिश अहसास दे गई, पंछी को भीगा देखा, आसमा को आज पंछियों से भरा देखा, धीमे से किरण निकल अाई, फिर घोसलो से मां मां कहती पंछी की आवाज अाई, कहीं दूर वादियों में सुकून ढूंढ़ा करते है, वो आजकल लिखने को सुकून बाटा करते है, #लिखकर