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'आठ वर्षिय चिंटू' आओ आज तुम्हे मैं एक किस्सा सुना

'आठ वर्षिय चिंटू'

आओ आज तुम्हे मैं एक किस्सा सुनाता हूँ।
'चिंटू' की तुम्हे मैं एक दास्तां सुनाता हूँ। चिंटू छ: साल का नन्हा सा बच्चा था जब उसे उसके माता-पिता उसकी नानी के यहाँ छोड़ आए थे। वो अपने मामा की शादी में गया था। उस मासूम को क्या पता था की उसकी ज़िंदगी बदलने वाली है। वो तो खुशी-खुशी अपनी मामी से मिलने गया था। नाना जी के देहांत के बाद नानी की इच्छा थी की उनकी तीनों बेटियों में से किसी एक बेटी के बच्चे को वो अपने पास रख के पाले। नानी कहती थी ये नाना जी की आखिरी इच्छा थी जो उनके जीते जी तो पूरी ना हो पाई पर उनके मरणोप्रांत पूरी की जाए। चिंटू की बड़ी मौसी की सास बहुत ही तुनक-मिज़ाज़ थी। मौसी का उन्होनें अपने मायके जाना बंद कर रखा था। तो उनके बेटे का तो वहाँ रुकने का सवाल ही नहीं था। 

अब आई चिंटू की माँ की बारी। माँ बहुत ही आज्ञाकारी रही थी अपने पूरे जीवनकाल में। उन्होनें कभी किसी को 'ना' नहीं बोला। जब माँ से नानी ने उनका बेटा माँगा तो वो धर्मसंकट में पड़ गई।
बड़ी ज़द्दोज़हद के बाद एक बेटी एक माँ के आगे हार गई और दिल पे पत्थर रख कर उन्होने चिंटू को नानी के हवाले कर दिया और भारी मन से चली गई। और चिंटू, जिसे तो कुछ पता भी नहीं था, रूआंसा सा रहने लगा। उसे अपने माता-पिता से नफरत हो गई। ये वो उम्र होती है जब एक बच्चे को उसके माँ-बाप की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। उस नादान को क्या पता था, कि उसके माता-पिता किस गरीबी से जूझ रहे थे और उनके जिगर के टुकड़े को एक बेहतर ज़िन्दगी मिले इस नाते उस माँ ने अपने कलेज़े पे पत्थर रख लिया था।

खैर, दिन बीतते गए। चिंटू का दाखिला वहाँ के सबसे अच्छे स्कूल में करा दिया गया। वो पढ़ाई में कमज़ोर था इसिलिए उसे कक्षा दो की जगह कक्षा एक में ही दाखिला मिल पाया। स्कूल का पहला दिन था और उसका स्कूल करीब एक किलोमिटर दूर। उसके मामा उसे पहले दिन पैदल ले के गये और चिंटू से कहा,"रास्ता अच्छे से याद कर लो, कल से तुम्हे अकेले ही आना-जाना है, कोई तुम्हे छोड़ के नहीं आएगा"। बेचारा चिंटू क्या करता। बच्चा था, ना किसी को कुछ बोल सकता था ना कुछ कर सकता था। हाँ उसे एक बात की तक़लीफ ज़रूर होती थी। उसके सभी दोस्तों को उनके पापा अपनी फटफटिया पे स्कूल छोड़ने जाते थे और वो बेचारा पैदल जाता था। और जब उसके दोस्तों के पापा उसे अपनी दुपहिया पे बैठा के स्कूल छोड़ देते तो वो बात भी मामा को पसंद नहीं आती। अब आप सोच रहे होंगे की शायद उसके मामा के पास दुपहिया नहीं होगी। थी उनके पास, मगर शायद पैट्रोल महंगा होगा इसिलिए छोड़ के नहीं आते थे। पर चिंटू तो उनसे बहुत प्यार करता था। उसने अपने बाल मन को ये कह कर संतावना दे दी वो लोग उसे स्वावलंबी बनाना चाहते हैं इसिलिए उसे हर जगह अकेला भेज देते हैं।

चिंटू में कुछ कमियाँ थी जो उसे भी नहीं पता थी। बच्चा ही तो था। उसे क्या पता था की तोतलापन क्या होता है। जब वो कुछ शब्द बोलता तो लोग समझ नहीं पाते थे और उससे बार बार पूछते थे। उसे लगता था कि लोग उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं। उसकी आवाज़ भी पतली थी, लड़कियों जैसी। उसका मुंडन भी काफी देर से हुआ था जिसकी वजह से जब उसने स्कूल में दाखिला लिया तो उसके लंबे-लंबे बाल हुआ करते थे। और पूरा स्कूल उसे लड़की कह कर चिढ़ाता था। सोने पे सुहागा ये था कि उसके मामा ने उसे एक रंग-बिरंगी छाता ला दिया था जो सर पे टाँगा जाता था। अब उस छाते को सर पे टाँग के जब वो स्कूल जाता तो किसी जोकर से कम ना लगता था। इसके साथ साथ बचपन से ही उसके सीने पे उभार कुछ ज्यादा था। शायद किसी होर्मोनल प्रॉब्लम की वजह से। उस नन्हे से बच्चे को क्या पता था कि ये सब क्या होता है। वो तो बस अपनी पढ़ाई और खेल-कूद में लगा रहता था।
'आठ वर्षिय चिंटू'

आओ आज तुम्हे मैं एक किस्सा सुनाता हूँ।
'चिंटू' की तुम्हे मैं एक दास्तां सुनाता हूँ। चिंटू छ: साल का नन्हा सा बच्चा था जब उसे उसके माता-पिता उसकी नानी के यहाँ छोड़ आए थे। वो अपने मामा की शादी में गया था। उस मासूम को क्या पता था की उसकी ज़िंदगी बदलने वाली है। वो तो खुशी-खुशी अपनी मामी से मिलने गया था। नाना जी के देहांत के बाद नानी की इच्छा थी की उनकी तीनों बेटियों में से किसी एक बेटी के बच्चे को वो अपने पास रख के पाले। नानी कहती थी ये नाना जी की आखिरी इच्छा थी जो उनके जीते जी तो पूरी ना हो पाई पर उनके मरणोप्रांत पूरी की जाए। चिंटू की बड़ी मौसी की सास बहुत ही तुनक-मिज़ाज़ थी। मौसी का उन्होनें अपने मायके जाना बंद कर रखा था। तो उनके बेटे का तो वहाँ रुकने का सवाल ही नहीं था। 

अब आई चिंटू की माँ की बारी। माँ बहुत ही आज्ञाकारी रही थी अपने पूरे जीवनकाल में। उन्होनें कभी किसी को 'ना' नहीं बोला। जब माँ से नानी ने उनका बेटा माँगा तो वो धर्मसंकट में पड़ गई।
बड़ी ज़द्दोज़हद के बाद एक बेटी एक माँ के आगे हार गई और दिल पे पत्थर रख कर उन्होने चिंटू को नानी के हवाले कर दिया और भारी मन से चली गई। और चिंटू, जिसे तो कुछ पता भी नहीं था, रूआंसा सा रहने लगा। उसे अपने माता-पिता से नफरत हो गई। ये वो उम्र होती है जब एक बच्चे को उसके माँ-बाप की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। उस नादान को क्या पता था, कि उसके माता-पिता किस गरीबी से जूझ रहे थे और उनके जिगर के टुकड़े को एक बेहतर ज़िन्दगी मिले इस नाते उस माँ ने अपने कलेज़े पे पत्थर रख लिया था।

खैर, दिन बीतते गए। चिंटू का दाखिला वहाँ के सबसे अच्छे स्कूल में करा दिया गया। वो पढ़ाई में कमज़ोर था इसिलिए उसे कक्षा दो की जगह कक्षा एक में ही दाखिला मिल पाया। स्कूल का पहला दिन था और उसका स्कूल करीब एक किलोमिटर दूर। उसके मामा उसे पहले दिन पैदल ले के गये और चिंटू से कहा,"रास्ता अच्छे से याद कर लो, कल से तुम्हे अकेले ही आना-जाना है, कोई तुम्हे छोड़ के नहीं आएगा"। बेचारा चिंटू क्या करता। बच्चा था, ना किसी को कुछ बोल सकता था ना कुछ कर सकता था। हाँ उसे एक बात की तक़लीफ ज़रूर होती थी। उसके सभी दोस्तों को उनके पापा अपनी फटफटिया पे स्कूल छोड़ने जाते थे और वो बेचारा पैदल जाता था। और जब उसके दोस्तों के पापा उसे अपनी दुपहिया पे बैठा के स्कूल छोड़ देते तो वो बात भी मामा को पसंद नहीं आती। अब आप सोच रहे होंगे की शायद उसके मामा के पास दुपहिया नहीं होगी। थी उनके पास, मगर शायद पैट्रोल महंगा होगा इसिलिए छोड़ के नहीं आते थे। पर चिंटू तो उनसे बहुत प्यार करता था। उसने अपने बाल मन को ये कह कर संतावना दे दी वो लोग उसे स्वावलंबी बनाना चाहते हैं इसिलिए उसे हर जगह अकेला भेज देते हैं।

चिंटू में कुछ कमियाँ थी जो उसे भी नहीं पता थी। बच्चा ही तो था। उसे क्या पता था की तोतलापन क्या होता है। जब वो कुछ शब्द बोलता तो लोग समझ नहीं पाते थे और उससे बार बार पूछते थे। उसे लगता था कि लोग उसका मज़ाक उड़ा रहे हैं। उसकी आवाज़ भी पतली थी, लड़कियों जैसी। उसका मुंडन भी काफी देर से हुआ था जिसकी वजह से जब उसने स्कूल में दाखिला लिया तो उसके लंबे-लंबे बाल हुआ करते थे। और पूरा स्कूल उसे लड़की कह कर चिढ़ाता था। सोने पे सुहागा ये था कि उसके मामा ने उसे एक रंग-बिरंगी छाता ला दिया था जो सर पे टाँगा जाता था। अब उस छाते को सर पे टाँग के जब वो स्कूल जाता तो किसी जोकर से कम ना लगता था। इसके साथ साथ बचपन से ही उसके सीने पे उभार कुछ ज्यादा था। शायद किसी होर्मोनल प्रॉब्लम की वजह से। उस नन्हे से बच्चे को क्या पता था कि ये सब क्या होता है। वो तो बस अपनी पढ़ाई और खेल-कूद में लगा रहता था।